दूर फेंक उस भरमजाल को - (POETRY) written by Alok Pandey

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तांको 

झांको 

देखो फिर से 

बांध टकटकी 

तान भृकुटि 


आंख खोलकर 

देख भालकर

तुम संभालकर 


मान चुके जिसे अपना 

तुम सब कुछ

कहीं वो ...


कोई वृहद भरमजाल तो नहीं 

मन का कोई मलाल तो नहीं 

झूठा मन का द्वार तो नहीं 

ग़र है शंका तो फिर 


टटोल मन 

फेंक दूर उस भरम जाल को 

जो तोड़े तेरे मन को 

जो टोके तेरे सच  को 

जो अवरोध करे उत्पन्न तेरे अतंरिक्ष विशाल में 

डाले खलल जो तेरी उड़ान में 


दूर फेंक उस भरमजाल को 

दूर फेंक उस भरमजाल को 

दूर फेंक उस भरमजाल को 


लिए लबादा 

तेरी चिंता का 

जब जब ये 

तेरे तक आये 


लगे तुझे जो ऐसा कि

ये तुझको


उकसाये 

कुंठाओं को गिनवाए

बुद्धि को चलवाये 

अपने ढंग से मनवाए

ख़ुद का लोहा मनवाए 

बड़ा धुरंदर बन जाये 

बड़ी सी चिंता गिनवाए

घबराए 

हाय हाय हाय 

उफ़्फ़ तौबा भी कर जाए 

अंत मे शुभचिंतक बन जाये 


तो 

दूर फेंक उस भरमजाल को 

दूर फेंक उस भरमजाल को 

दूर फेंक उस भरमजाल को 


बन, स्वयं तू अपनी ढाल ज़िन्दगी 

तोड़ दे सारी बाधाएं 

फांद समंदर 

लांघ समंदर 

तोड़ दे सारी विपदाएं 

जीत ज़िन्दगी 

गीत ज़िंदगी 

सत्य बना दे इसको तू 


और दूर फेंक उस भरमजाल को 

बस दूर फेंक उस भरमजाल को ....


✍️आलोक पाण्डेय