प्यारी मीठी सौंधी सौंधी बचपन की यादों को समर्पित, हम 90 वालों की ...

चलो न
एक पुरानी कॉपी के पन्नों से एक पन्ना फाड़कर
तिकोना हवाईजहाज़ बनायें✈️
और फिर उसको
अपने आंगन में फिर से उड़ायें
आओ न एक नवैया बनायें, काग़ज़ वाली 🛶
जो भईया की दुकान के सामने से निकल जाए
वो भीग जाए
और हम खिलखिलायें...
चलो न वो बल्ब फिर से लटकायें 100 वाट वाला
एक थुमरिया पे
जिसके जलने पे
हम ख़ुशी से झूम जायें
आओ न सारे साथ बैठकर
कंचे, गिल्ली डंडा, बंगु फिर से नचायें
चलो न
कच्ची वाली छत पे चलके
बहुत सारे रंगों वाली
पच्चीस पैसे वाली पतंग उड़ायें
आओ न
कुछ आम, पटरी के पार वाली बगिया से तोड़ लायें
चलो न
बारिश में
अपना बस्ता लेके फिर से भीग जायें
और फिर वापस
घर लौट जायें
आओ न
बाबा के कंधे पे बैठ कर
नहर के पार वाले बाज़ार से मुरमुरिया ले आयें
चलो न
सर्दी की ओस में लिपटे रास्तों पे
कुछ पुआल जलायें
उनमें आलू भूनें
और सिलबट्टे पे हरी मिर्च और नमक से बना हुआ
मसाला उनपे लगा के खा जायें
आओ न
बाबा, दादी की कहानियाँ सुने और
तोता, मैना, शेर, हाथी और भालू की पीठ पे
सवारी कर आयें
चलो न
वो सिनेमा वाला आया
डिब्बे में सब हीरो हीरोईन भर लाया
उनकी दुनिया में झांक आयें
आओ न नंगे पैर पगडंडी पे, दौड़ जायें
ठंडी घास की दरी पे टहल आयें
चलो न वो एंटीना हिल गया
उसको सही कर आयें
छत पे जाके आवाज़ लगायें
आया क्या
और फिर जल्दी से नीचे भाग आयें..
आओ न मिट्टी का तेल डालकर लालटेन जलायें
सब साथ बैठें
और खाना खायें
चलो न
चैतू, सियाराम, मिड़ई, छेदा, मथुरी, शमशेर
गोविन्द इन सबको बुलायें
और इनसे झूला बनवायें
चलो न इतवार को बुला लायें
हफ़्ते में एक दिन आने वाली पिच्चर के
सामने बैठकर फिर महफ़िल सजायें
आओ न बैलगाड़ी ले आयें
उसमें लटक के गाँव के बाहर तक जायें
और फिर उधर से ही तालाब से कुछ कमल गट्टा ले आयें
चलो न
अपना लकड़ी वाला टेढ़ा मेढ़ा बल्ला
उठायें और किसी पेड़ में खड़िया से
विकेट बनायें
आओ न मम्मी पापा को चूम लें
और गले लग जायें
एक दम से रो लें और फिर खिलखिला के ख़ुश हो जायें
आओ न
नफरतें मिटाकर
प्यार फैलायें
चलो न फिर से
बच्चा बन जायें...
🙏 - आलोक पाण्डेय
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