प्यारी मीठी सौंधी सौंधी बचपन की यादों को समर्पित, हम 90 वालों की ...

इतवार वाली यादें - (POETRY) written by Alok Pandey.jpg

चलो न

एक पुरानी कॉपी के पन्नों से एक पन्ना फाड़कर 

तिकोना हवाईजहाज़ बनायें✈️

और फिर उसको 

अपने आंगन में फिर से उड़ायें

आओ न एक नवैया बनायें, काग़ज़ वाली 🛶

जो भईया की दुकान के सामने से निकल जाए

वो भीग जाए

और हम खिलखिलायें...

चलो न वो बल्ब फिर से लटकायें 100 वाट वाला 

एक थुमरिया पे 

जिसके जलने पे 

हम ख़ुशी से झूम जायें

आओ न सारे साथ बैठकर 

कंचे, गिल्ली डंडा, बंगु फिर से नचायें

चलो न 

कच्ची वाली छत पे चलके 

बहुत सारे रंगों वाली 

पच्चीस पैसे वाली पतंग उड़ायें

आओ न

कुछ आम, पटरी के पार वाली बगिया से तोड़ लायें

चलो न 

बारिश में 

अपना बस्ता लेके फिर से भीग जायें

और फिर वापस 

घर लौट जायें

आओ न 

बाबा के कंधे पे बैठ कर 

नहर के पार वाले बाज़ार से मुरमुरिया ले आयें

चलो न 

सर्दी की ओस में लिपटे रास्तों पे 

कुछ पुआल जलायें

उनमें आलू भूनें 

और सिलबट्टे पे हरी मिर्च और नमक से बना हुआ 

मसाला उनपे लगा के खा जायें

आओ न 

बाबा, दादी की कहानियाँ सुने और 

तोता, मैना, शेर, हाथी और भालू की पीठ पे

सवारी कर आयें

चलो न 

वो सिनेमा वाला आया 

डिब्बे में सब हीरो हीरोईन भर लाया 

उनकी दुनिया में झांक आयें


आओ न नंगे पैर पगडंडी पे, दौड़ जायें

ठंडी घास की दरी पे टहल आयें


चलो न वो एंटीना हिल गया 

उसको सही कर आयें

छत पे जाके आवाज़ लगायें

आया क्या 

और फिर जल्दी से नीचे भाग आयें..


आओ न मिट्टी का तेल डालकर लालटेन जलायें

सब साथ बैठें 

और खाना खायें

चलो न 

चैतू, सियाराम, मिड़ई, छेदा, मथुरी, शमशेर

गोविन्द इन सबको बुलायें

और इनसे झूला बनवायें


चलो न इतवार को बुला लायें

हफ़्ते में एक दिन आने वाली पिच्चर के 

सामने बैठकर फिर महफ़िल सजायें


आओ न बैलगाड़ी ले आयें

उसमें लटक के गाँव के बाहर तक जायें

और फिर उधर से ही तालाब से कुछ कमल गट्टा ले आयें


चलो न 

अपना लकड़ी वाला टेढ़ा मेढ़ा बल्ला

उठायें और किसी पेड़ में खड़िया से 

विकेट बनायें


आओ न मम्मी पापा को चूम लें

और गले लग जायें

एक दम से रो लें और फिर खिलखिला के ख़ुश हो जायें

आओ न 

नफरतें मिटाकर 

प्यार फैलायें


चलो न फिर से

बच्चा बन जायें...


🙏 - आलोक पाण्डेय