
2020
जितना बदनाम होगा इतिहास में
उतना शायद ही कोई होगा, तुमको याद रखेंगे गुरु।
मौत को लेकर जो बड़े बड़े फ़ैसले तुमने लिए 2020 ,उनको हम सब, आने वाली पीढियां वर्षों तक न भूल पाएंगे.
इतने बड़े बड़े महारथी लील लिए तुमने ।
इररफ़ान साहब, ऋषि जी, वाजिद जी, सुशान्त सिंह राजपूत और अब निशिकांत कामत और आज ही पंडित जसराज जी ।
ओह और न जाने कितने हमारे प्रवासी मज़दूर, किसान, आम इंसान जो इस चकचौन्ध से दूर है ,चुप चाप अलविदा कह गए ।
ये साल नही , काल है ससुरा ।अभी 20 साल पहले हम झूमे थे, नाचे थे ,गाये थे, चिल्ला चिल्ला के, देखो 2000 ज़माना आ गया और 20 साल बाद ,इस क़दर इस शताब्दी की दहशत होगी ,किसने सोचा था।
तुमसे लाख गुना बेहतर था यार ,वो दूरदर्शन और लैंडलाइन वाला ज़माना ।जीना दूभर हो गया साला ,जितना तरक़्क़ी
उससे कई गुना ज़्यादा बर्बादी।
दंगे, धरने, रेप, बाढ़, जंगल जलना, जानवरों का मरना, विस्फ़ोट कितना कुछ समेट लिया है इस साल ने जो जानकर भविष्य में हमेशा हमको याद करने में तकलीफ़ होगी। कभी कभी तो ऐसा लगता है, भाई बहुत कर ली तरक़्क़ी ,प्रोग्रेस ,अचीवमेंट.अब जो है, उसको ठीक से संभालो, बचा लो, वही बहुत है ।
एक तरफ़ चाँद की टेरिस पे विक्रम भाई लैंड कर रहे हैं ,इधर ग्राउंड फ्लोर पे कोरोना ने वाट लगा रखी है, त्राहिमाम मचा रखी है ,पूरी दुनिया भीगी बिल्ली की तरह कोरोना के सामने मिमिया रही है।
आपका सारा का सारा गोला,बारूद ,हथियार ,टेक्नोलॉजी ,इंटरनेट ,डॉक्टरी ,विज्ञान धरा का धरा रह गया और वो एक के बाद एक अपने इरादों को मज़बूत करता जा रहा है ,कौन समय ,और कौन ,अब समय को आप किसी भी अर्थ में परिभाषित कर सकते हैं ,ख़ुद के आस पास घटित होने वाली घटनाओं से ।
इस विश्व भर से, मैं प्रकृति की ओर से एक सवाल करता हूँ ..
क्या आप अपने परमाणु बम से इसको मार सकते हो ..किसको यही जो हो रहा है अभी ,नही न ..
आप कुछ नही कर सकते सर ..
बस आपस मे लड़िये,अगाड़ ,पिछाड़ खेलिए, प्रकृति को जो निर्णय लेना है वो ले रही है ,अपने तरीक़े से ...
जलते जंगल ,दहाड़ता समंदर ,दरकते पहाड़ ,गिरते पेड़ ,उफनती नदियां ,बाढ़ ,हद से ज़्यादा सब कुछ
हिलती पृथ्वी,गिरती इमारतें, डूबते शहर और गाँव
सड़कों पे बेहिसाब भागता बदहवास सा मानव ।
अभी भी नही समझे तो कब समझोगे सर
अजीब सी घुटन और बेचैनी है माहौल में ।
ये अलार्म है या अंतिम सूचना पता नही ,लेकिन कोई है जो हमसे ख़ुश तो नही है ,बहुत ज़्यादा नाराज़ है ।
ये साल आत्ममंथन का है ,धुरी के उस हिस्से पे शायद हैं हम सब, जहां से अगर अब सन्तुलन बिगड़ा तो सीधा नीचे गहरे गिरेंगे ...
संज्ञा, सर्वनाम..का क्या कहूँ..
लेकिन यार
ये साल वाक़ई ख़फ़ा सा है ...
प्रकृति
जीवन
मनुष्य
ईश्वर
संतुलन डगमगाया सा है...
डरने की ज़रूरत नही है ,लेकिन सावधान तो होना पड़ेगा .
इसको नकारा नही जा सकता ।
कोई बड़ा बुज़ुर्ग कह गया है ,ज़्यादा यहां गहरा खूंटा न गाड़ो
किराए पे हो किरायेदार की तरह रहो और चलते बनो ..
हमने शायद इसको अपनी बपौती समझ लिया था ।
✍️ आलोक पाण्डेय
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