सोशल मीडिया आज के दौर में बुरी तरह संक्रमित हो चुका है।कोई भी, किसी के लिए कुछ भी बोल रहा है। बिना बात को जाने,लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं ,ये घातक है।फ्री इंटरनेट और मोबाइल की घर घर तक पहुंच ने, लोगों को जागरूक तो किया, पर अभी ये आग में घी डालने का काम कर रहा है।
चटपटी ख़बरें ,पार्श्व संगीत, ब्रेकिंग न्यूज़, कांच का टूटना, उसके बाद ख़बर का दिखना ,एंकर का ज़ोर से चिल्लाना, यु ट्यूब पे बैठे हये सिर्फ़ लाइक और शेयर और व्यूज़ की भूख ने, लोगों को इंसानियत से बहुत दूर कर दिया है । इन सबके बीच कुछ अच्छे लोग भी हैं जो कोशिश कर रहे हैं ,लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है। अफ़सोस उनको हम सुनना भी नही चाहते।
कोई भी फ़ेसबुक पे लाइव आके कुछ भी बोलता है, कुछ ऐसा जो रोचक हो, गाली गलौज है ,अतरंगी हो ,दादागीरी हो, किसी का सपोर्ट हो या किसी का विरोध हो, हम फ़्री बैठे हुए हैं इनको लाइक, कमेंट और शेयर करने के लिए । और उसको लेके हम आपस मे भयानक बहस भी कर सकते हैं।
हमने अपना हीरो किसको बना डाला है, सोचना होगा, गंभीरता से। मुद्दे बहुत हैं ,ज़्यादा लम्बी पोस्ट पड़ता भी नही है कोई, और मेरी पोस्ट में वैसे भी कोई मसाला नही है तो क्यों पढ़े कोई।
लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा ज़हरीली होती जाती, बीमार होती जाती इस सोशल मीडिया के बारे में, ज़रूर सोचिएगा कहीं ये आपके अपने घर, परिवार, बच्चों को तोड़ तो नही रही, और ज़्यादा बीमार तो नही बना रही। पूछियेगा, बात कीजिएगा, समय है बात करने का।
कवर फ़ोटो में कुछ और,अंदर ख़बर कुछ और,
मुद्दा कुछ और, बहस कुछ और, बस सिर्फ़, शोर शोर शोर और इस सब शोर में, दम घुटता सच का, जो किसी को दिखाई नही देता, न ही कोई देखना चाहता है।
90 के दशक में जब न्यूज़ आती थी, तो सिर्फ़ न्यूज़ ही आती थी ,उसमें कोई बैकग्राउंड म्यूज़िक नही होता था, साधारण तरीक़े से दो एंकर समाचार सुनाते थे ।कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नही थी । मानता हूँ समय के साथ साथ सबको अपडेट होना चाहिए, लेकिन जो भसड़ आजकल सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स, पे मची हुई है वो क्रिएटिविटी के नाम पे घोर चूतियापा दिखाई देता है। टी आर पी के आगे कुछ नही दिखता।
ये घातक है, बहुत ज़्यादा। ऊपर से मोबाइल की घर घर तक पहुँच विकराल रूप रे रही है ।लोगों को इसका नशा हो गया है, तुरंत प्रतिक्रिया देना ,बिना सामने वाले के बारे में कुछ भी जानना, आपसी सबंधों को भी ख़राब कर रहा है ।परिवार बिख़र रहे हैं ,युवा पीढ़ी आगे बढ़ रही है, लेकिन ये स्मार्ट फ़ोन की मारी ये युवा पीढ़ी बहुत अकेली भी हो रही है, जिसके परिणाम में, डिप्रेशन, एंजायटी, अनिद्रा जैसी घातक बीमारी इन युवाओं को घेर रहीं हैं ।
डिजिटल भारत कहीं विकलांग न हो जाएं, ये गंभीर है।
हर चीज़ आज मोबाइल पे डिपेंड हो गई है। एक तरह से हम ऑनलाइन सुविधाएं बढ़ा के कहीं न कहीं ख़ुद को पंगु बना रहे हैं ।बस आवाज़ दीजिए क्या चाहिए सब फ़ोन पे उपलब्ध ।ऑनलाइन पढ़ाई की app का विज्ञापन धड़ल्ले से टी वी पर आ रहा है । अरे ठीक है यार ,बस भी करो अब । पढ़ाई हमने भी की है यार, इतना भी क्या, पढ़ने दो बच्चों को, चलने दो, घर से बाहर निकलने दो, चेहरे देखने दो ,क़िरदार समझने दो, गिरने दो, लड़खड़ाने दो, संभलने दो ।
कहीं ऐसा न हो, अंधेरे बन्द कमरे, मोबाइल की स्क्रीन, इंटरनेट का जाल भारत का भविष्य लील जाए ।
बाक़ी आप सबका अपना अपना अनुभव है
हो सकता है आप मेरी बातों से इत्तेफाक न रखें
कोई ज़रूरी नही ।
बस अपना ख़्याल रखें ।
✍️ आलोक पाण्डेय
स्वस्थ भारत
स्वर्णिम भारत
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