उस, पाक़ रूह को दिल से सलाम
✍10 रुपये का छोटा रिचार्ज़ बेचने वाला बद्रीनाथ✍
अब बद्रीनाथ कोई रीचार्ज़ नही बेचेगा न ही कोई खेल दिखायेगा... क्योंकि, चंद्रकांता का बद्रीनाथ, कोई दूसरा रूप धरने, किसी दूसरी दुनिया मे चला गया
ये साली ज़िन्दगी है क्या, लाइफ इन आ मेट्रो और क्या, पान सिंह तोमर को क्या हासिल हुआ, संडे को छुट्टी भी अब कौन मनाएगा।
दिल किलर भी अब नही होगा, उसके बिना, साहब बीबी और गैंगस्टर मिल के कहीं अंग्रेजी मिडियम में दाखिला ले रहे होंगे। जय हो का जज़्बा क़ायम रखेंगे हम। जाओ यार अब बात नहीं करेंगे आप से नहीं तो आपका रोग़ लग जायेगा हमको।
दिमाग़ सुन्न है, मन उदास ,पता नही ।
आज तक तो ऐसा नही लगा कि आप कभी जिससे मिले भी न हो उसके लिए इतना प्यार और इतनी तड़प,उसके दूसरी दुनिया मे ,जाने पे। अब कभी न मिल पाने का इतना बुरा मलाल
कि क्यों नही मिल पाए, जीते जी, एक बार स्पर्श तो करना था, उस रूह को या कहीं पास से होके ही निकल जाते यार आलोक सामने से देख भी न पाए। सोचा तो बहुत, कोशिश भी की लेकिंन ओह्ह। जिसको अभिनय में आप सब कुछ मानते हो अपना, आंख बंद करके जिसपे भरोसा करते हो और सिर्फ़ जिसका होना फ़िल्म में आपके लिए, सिनेमाहॉल तक ले जाने के लिए काफ़ी हो, उनका यूँ चले जाना, आपको झकझोरता है
2007 में जब रंगमंच को अपनाया था, तब शाहरुख़, सलमान, गोविंदा से लबरेज़ था ये मन, लेकिन जैसे जैसे कारवां आगे बढ़ा, चीज़ें बदलती चली गईं, ऐसा नही की आज इन तीनों को मैं प्यार नही करता
लेकिन ये दिल अब किसी और का हो गया था। भारतेन्दु नाट्य अकेडमी से 2011 में निकलने के बाद, इधर उधर हाथ पैर मार रहा था, क्या करूँ। कुछ समझ नही आ रहा था ।2012 आया
दिल मे कुछ नया सीखने की ललक लेके, कोलकाता जाना हुआ, एक्टिंग फ़ॉर स्क्रीन कोर्स करने। सत्यजीत रे फ़िल्म एवम टेलीविज़न इंस्टिट्यूट। जनवरी से सितंबर, वहां रहा और वहीं विश्व सिनेमा को जानने का मौका मिला।उसी बीच सत्यजीत रे, गुरुदत्त,हिचकॉक, विमल रॉय, रितविक घटक, श्याम बेनेगल और तमाम दुनिया भर के निर्देशक और अभिनेता जैसे मर्लिन ब्रांडो, अल्पचिनो, रॉबर्ट डिनोरियो, पंकज कपूर, बलराज साहनी, सुनील दत्त और भी बहुत लोगों के काम को देखा।
इस बीच बहुत सी फिल्में देखीं। देशी और विदेशी, लेकिन जिसकी तलाश थी मुझे। मुझको तलाशने की, वो सुई अटकी जाके 2012 में आई फ़िल्म पान सिंह तोमर को देखने के बाद, वहीं देखी थी, कोलकाता में। बस उस फ़िल्म से पहले और बाद , काफ़ी कुछ बदला हुआ था। उसी समय Vipin Sharma (तारे ज़मी पे) सर की क्लास भी हुई।उन्होंने रही बची कसर भी पूरी कर दी। बोला तुम लोगों की अच्छी बात ये है कि तुम सब ज़ीरो पे हो जाते समय उन्होंने हमको यही अंक दिये। मन ही मन बहुत बुरा भी लगा एक्टर का ईगो भी टकराया। लेकिन कुछ था जो वो दे गए, नई एक सोच।
शायद कहीं दूर एक अंधेरे में, एक दिया जला गए। उस दैरान इररफ़ान सर की भी बात होती, तो सर मुस्कुरा कर बोल देते जाने दो। हम समझ जाते कि अभी हम काफ़ी दूर हैं।
उसके बाद हमारा प्रैक्टिकल शुरू हुआ, जिसमें मैंने बहुत बुरा काम किया, बुरा क्या, वाहियात। धीरे धीरे समझना शुरू किया
देखना शुरू किया इररफ़ान सर को, आनन फ़ानन में, हासिल, द वारियर्, पान सिंह तोमर, मक़बूल
देख डाली, और भी यूट्यूब पे पड़ी बहुत सी क्लिप, यू ट्यूब पे रोग् फ़िल्म का एक सीन पड़ा है, पिछले गुरुवार को मैंने अपनी जान लेने की कोशिश की, इस सीन को, मुझे भी आईडिया नही है कि मैंने कितनी बार देखा होगा ।
यार कोई इतना सहज कैसे हो सकता है। मंत्र मुग्ध , कर देने वाली, मुस्कान और आख़िर में वो शॉक देंगे शॉक ओके
वाला डायलॉग, खींच ले जाता है, अपनी दुनिया मे ।
धीरे धीरे मेरे सिर से स्टारडम हीरो गिरी, ये सब देखने का भूत उतरता गया और उनको मैं और देखता गया, देखता गया, सहजता को सरलता को, सच्चाई को, आंखों को, आवाज़ को, चाहें कमर्शियल सिनेमा हो या आर्ट, इररफ़ान सर का अपना काम पूरा मिलता है आपको। सारी एक्टिंग की बातें, सारे एक्टर, एक तरफ़ और उनका वो ,वोडाफ़ोन का छोटा रिचार्ज 10 RS में एक तरफ़
उफ़्फ़ 🙏
ज़्यादा बड़ी बात तो नही कहूँगा ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पे भारत के बहुत से अभिनेताओं ने काम किया होगा,लेकिन जो रुतबा इररफ़ान ख़ान की वज़ह से हमको हासिल हुआ, वो शायद किसी और से मिला हो। शायद आप भी मेरी बात से इत्तेफाक रखें।
क्या कहूँ और लेकिन हम हमेशा किसी के जाने के बाद उसकी क़द्र ज़्यादा करते हैं,उससे पहले इंतज़ार करते हैं।
इररफ़ान गांव तक पहुंच रहे थे, बिना किसी लाग लपेट, हीरोगीरी मार धाड़ के,अपने क़िरदार की सच्चाई से ।
मुझे याद है ख़ूब, एक क़िस्सा, जब हम गांव में अपने चबूतरे पे बैठे थे, कई लोग थे वहां, मेरे चाचा भी, उस समय साहब बीबी और गैंगस्टर आई हुई थी। चाचा बोले यार सुनो, फ़िल्म का नाम लिया, यार वौ एक्टर ग़ज़ब है
बाकी आवाज़, और जो बोलन को लहज़ा है, अरे मज़ा आय जात है, और भी लोग थे, वाको का नाम है ।
मैं बोला वो चाचा वो एक्टर
इररफ़ान ख़ान हैं। चाचा बोले अच्छा , यार अच्छा काम करत है वो , मैं मन्द मंद मुस्कुराया, सोचा देखो यार देर ही सही साहब गांव गांव पहुँच रहे हैं। धीरे धीरे फ़िल्मे आती गईं, एक्टिंग का सारा मतलब बदलने लगा। पानसिंह तोमर बार बार देखी प्यार हो जायेगा आपको पान सिंह से। क्या लिखूं और इनके प्यार में
जितना लिखूं कम है, कल दुआ दे रहे थे, आज अलविदा ..
यादों में हो आप, हमेशा सर, पीढ़िया आएंगी जाएंगी
फिल्में बनेंगी, फ्लॉप होंगी
स्टार आएंगे, जाएंगे, लेकिन जब जब
एक्टिंग की बात होगी, ज़हनियत की बात होगी, आप का ज़िक्र अव्वल होगा ।
अलविदा तो नहीं कहूंगा आपसे, बस इतनी इल्तिज़ा है ।
लिबास बदल के फिर आ जाना जल्दी, आप जैसे लोगों की ज़रूरत है, बेचैन रास्तों को ।
आपकी दुनिया से प्रेरित एक छोटा सा इंसान।
नमन आपको 🙏
©️✍️आलोक पांडेय...
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